फ्रांसीसी खिलाड़ियों पर नस्लीय टिप्पणी: फ्रांस फुटबॉल फेडरेशन करेगा कानूनी करवाई; खिलाड़ियों के साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया जाएगा बर्दाश्त
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पेरिस13 मिनट पहले
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फीफा वर्ल्ड कप फाइनल में फ्रांस को अर्जेंटीना से पेनाल्ट शूटआउट में हार का सामना करना पड़ा।
कतर में 18 दिसंबर को संपन्न हुए फुटबॉल वर्ल्ड कप में फ्रांस को पेनाल्टी शूटआउट में अर्जेंटीना से हार का सामना करना पड़ा। हार के बाद फ्रांस के खिलाड़ियों को सोशल मीडिया पर ट्रोल किया जा रहा है। उन पर नस्लीय टिप्पणी की जा रही है। फ्रांस फुटबॉल फेडरेशन ने ऐसे लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी है। वहीं फ्रांस के कई राजनेताओं ने भी इसकी आलोचना की है।
दअरसल पेनाल्टी शूटआउट में अर्जेंटीना ने 4-2 से बाजी मारी। इससे पहले तय समय तक दोनों टीमें 2-2 गोल की बराबरी पर थीं। उसके बाद मैच हाफ टाइम में गया। हाफ टाइम में भी दोनों टीमों ने 1-1 गोल किए। इस तरह मैच 3-3 की बराबरी पर रहा। जिसके बाद मैच का फैसला पेनाल्टी शूटआउट में हुआ। फ्रांस की ओर से पेनाल्ट शूटआउट में कीलियन एम्बाप्पे और रांडल कोलो मुआनी गोल करने में सफल रहे। जबकि किंग्स्ले कॉमान और औरेलियन चौमेनी शॉट मिस कर गए। फ्रांस फुटबॉल फेडेरेशन ने अपने सोशल मीडिया से पोस्ट किया कि फ्रांसीसी टीम के कई खिलाड़ियों को सोशल मीडिया पर नस्लवादी टिप्पणी की जा रही है। फेडरेशन इसकी निंदा करता है। इसे कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। फेडरेशन ऐसे लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराएगा।
पहली बार ऐसा नहीं है कि खिलाड़ियों को इस तरह निशाना बना गया हो
ऐसा पहली बार नहीं है कि फुटबॉल खिलाड़ियों को इस तरह निशाना बनाया जा रहा है। इससे पहले भी कई टीमों के खिलाड़ियों को निशाना बनाया गया है। 2020 यूरो कप में स्विटजरलैंड से हार के बाद फ्रांस के खिलाड़ी कीलियन एम्बाप्पे को निशाना बनाया गया था। एम्बाप्पे ने कतर वर्ल्ड कप में गोल्ड बूट मिला। उन्होंने सबसे ज्यादा 8 गोल किए हैं। वहीं फाइनल में उन्होंने अर्जेंटीना के खिलाफ हैट्रिक गोल किए।
यूरो 2020 के फाइनल में इंग्लैंड को हार का सामना करना पड़ा था। उसके बाद इंग्लिश खिलाड़ी जादोन सांचो, बुकायो साका और मार्कस रैशफोर्ड को भी नस्लीय टिप्पणी का सामना करना पड़ा।
यूरो 2020 के फाइनल के बाद, इंग्लिश खिलाड़ी जादोन सांचो, बुकायो साका और मार्कस रैशफोर्ड, जो सभी अश्वेत हैं, को पेनल्टी स्कोर करने में विफल रहने के बाद ऑनलाइन गालियों का सामना करना पड़ा क्योंकि इंग्लैंड 1966 विश्व कप के बाद से अपनी पहली ट्रॉफी जीतने में विफल रहा। ब्रिटिश पुलिस ने उसके बाद कई गिरफ्तारियां कीं और एक व्यक्ति को 10 सप्ताह के लिए जेल में डाल दिया गया।
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