CWG गोल्ड मेडलिस्ट अचिंता की कहानी: एक टाइम के भोजन के लिए खेतों में किया काम, बड़े भाई और मां ने अचिंता की डाइट के लिए की मजदूरी
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बर्मिंघम2 मिनट पहलेलेखक: राजकिशोर
3 साल से घर नहीं गए हैं अचिंता।
बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स में रविवार रात देश को तीसरा गोल्ड दिलाने वाले वेटलिफ्टर अचिंता शेउली (73 KG) ने अपनी सफलता का श्रेय बड़े भाई, मां और कोच को दिया। हुगली के अचिंता के सपनों को पूरा करने के लिए उनके बड़े भाई आलोक शेउली ने अपने सपने बीच में ही छोड़ दिए। अचिंता अपनी तैयारियों के चलते पिछले 3 साल से घर नहीं गए हैं।
अचिंता ने उन्हीं को देखकर 2011 में वेटलिफ्टिंग शुरू की थी, लेकिन, 2013 में अचानक उनके पिता का देहांत हो गया। तब उनके पास पिता का अंतिम संस्कार करने तक के पैसे नहीं थे। घर की स्थिति बहुत खराब थी। ऐसे में मां के लिए दोनों बेटों को वेटलिफ्टिंग कराना संभव नहीं था। डाइट का इंतजाम करना भी मुश्किल होने लगा। इस कारण अचिंता के बड़े भाई ने अपने करियर का बलिदान देने का फैसला किया।
आलोक ने दैनिक भास्कर संवाददाता राजकिशोर यादव से खास बातचीत में अपने संघर्ष की कहानी बताई। आलोक ने बताया कि उनके पिता ठेले पर चावल की बोरियां ढोते थे। उनके देहांत के बाद घर की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो गई कि हम तीनों को एक टाइम के खाना के लिए दूसरों के खेत में काम करना पड़ता था। हमें एक दिन में 700 मिलते थे।
अचिंता के बचपन का फोटो (हाथ में गुब्बारा लिए हुए) मां-पापा और भाई के साथ।
अंडे और एक किलो मांस-चावल के लिए खेतों में काम किया
आलोक बताते हैं, ‘पिता के गुजर जाने के बाद मैने वेटलिफ्टिंग को छोड़ दी ताकि अचिंता अपना करियर जारी रख सकें। हम दोनों एक-एक अंडे और एक किलो मांस के लिए दूसरों के खेतों में काम करते थे। दिनभर काम करने के बाद हमें शाम में अंडा और मांस मिलता था, जिससे पेट भरता था।’
इंडिया खेलने के बाद मां और भाई के साथ अचिंता।
बड़े भाई और मां को डाइट के लिए करनी पड़ी मजदूरी
‘2014 में अचिंता का पुणे के आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टिट्यूट में चयन हो गया। फिर उन्हें नेशनल कैंप के लिए चुन लिया गया। इस खेल में डाइट खर्च ज्यादा है। ऐसे में DA के बाद भी उसकी डाइट पूरी नहीं होती थी। ऐसे में उसने मुझसे पैसे मांगे। फिर मैंने ज्यादा काम शुरू किया। मैं सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे तक लोडिंग का काम करता था। फिर शाम में 5 घंटे की पार्ट टाइम जॉब करता था और रात में एग्जाम की तैयारी भी। मैंने मेहनत की अचिंता के लिए डाइट के लिए पैसा एकत्रित हो सके।’
‘इतना ही नहीं, मेरे अलावा मां को भी काम करना पड़ा। मां ने भी दूसरों के खेतों में काम किया। हमने पैसे बचाकर अचिंता को भेजे, ताकि वह डाइट पर ध्यान दे। 2018 में खेलो इंडिया में सिलेक्शन होने के बाद अचिंता को पॉकेट मनी मिलने लगी। इसके बाद उनके डाइट खर्च का बोझ कम हो गया। अब वे केंद्र सरकार के टॉप्स योजना में भी शामिल हैं।’
73 KG वेट कैटेगरी में हिस्सा लेते हैं अचिंता।
कुल 313 KG वजन उठाया है अचिंता ने। स्नैच में 143 और क्लीन एंड जर्क में 170 KG।
पश्चिम बंगाल सरकार से नहीं मिली हेल्प
अचिंता के बडे भाई आलोक ने कहा कि अचिंता ने बंगाल से नेशनल स्तर पर मेडल जीते। यही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी देश के लिए कई टूर्नामेंट में मेडल जीते। जहां देश के अन्य राज्यों में खिलाड़ियों को नेशनल और इंटरनेशनल स्तर पर मेडल जीतने पर राज्य सरकार की ओर से मदद मिलती है, वहीं अचिंता के मेडल जीतने के बाद भी बंगाल सरकार की ओर से कोई हेल्प आज तक नहीं मिली है।
सिल्वर मेडलिस्ट से 10 KG वजन ज्यादा उठाया है अचिंता ने।
अचिंता ने रखा हमारा सम्मान
आलोक ने कहा, ‘अचिंता ने बर्मिंघम में मेडल जीतकर हमारी मेहनत और त्याग का सम्मान रखा। वहीं मेडल जीतकर मुझे और मां तथा कोच को समर्पित किया। हम बस यही चाहते हैं कि वह पेरिस ओलिंपिक में देश के लिए मेडल जीतें।’
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