PM से मिलेंगे वेटलिफ्टर विकास और लव: कॉमनवेल्थ मेडलिस्ट बोले- खिलाड़ियों को अपने राज्य में मिले नौकरी, परिवार को नहीं दे पाते टाइम
विवेक शर्माएक घंटा पहले
इंग्लैंड के बर्मिंघम में कॉमनवेल्थ गेम्स (CWG-2022) में भारत को सिल्वर मेडल दिलाने वाले वेटलिफ्टर विकास ठाकुर और ब्रॉन्ज मेडल दिलाने वाले लवप्रीत सिंह का याराना काफी गहरा है। दोनों दोस्त आज दिल्ली पहुंच रहे हैं और कल 13 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात करेंगे।
बता दें वेटलिफ्टर विकास ठाकुर प्रधानमंत्री मोदी से अपने मन की बात कहने गए हैं। प्रधानमंत्री से मुलाकात करने से पहले दैनिक भास्कर के साथ खास बातचीत में विकास ठाकुर और लवप्रीत सिंह ने कहा कि आज वह बहुत उत्साहित है कि देश के प्रधानमंत्री मोदी को वह मिलेंगे।
प्रधानमंत्री मोदी ने कॉमनवेल्थ गेम्स में जाने से पहले भी खिलाड़ियों को प्रोत्साहित किया था और मेडल जीतने के बाद भी वीडियो कॉल करके खिलाड़ियों के प्रदर्शन को खूब सराहना की। विकास ने 2014 और 2018 के कॉमनवेल्थ गेम्स में रजत और कांस्य पदक जीते थे।
सिल्वर मेडल जीतने के बाद लुधियाना पहुंचने पर विकास का कुछ इस तरह स्वागत किया गया था।
प्रधानमंत्री से मिल कहेंगे मन की बात
विकास ठाकुर और लवप्रीत सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिल वह उन्हें अपने मन की बात कहेंगे। उनके मन की बात यह है कि युवाओं को खेल में लाने के लिए सरकार बेहतर कदम उठाए। वहीं जो खिलाड़ी कॉमनवेल्थ गेम्स आदि जैसे बड़े प्लेटफार्म पर बेहतरीन प्रदर्शन करके आए उन्हें केन्द्र सरकार के साथ-साथ उनकी राज्य सरकारें भी प्रोत्साहित करें।
खिलाड़ी की एक आयु और एक खेलने की सीमा होती है, जब खिलाड़ी अपनी उस आयु से पार हो जाता है तो उसे अपना भविष्य अंधकार की ओर जाता दिखाई देता है। तो राज्य सरकार को चाहिए कि वह खिलाड़ियों को अपने ही राज्य में उनकी योग्यता मुताबिक नौकरी दे ताकि खिलाड़ी अपने भविष्य को भी सुरक्षित रख सके और राज्य के युवाओं को भी खेलों के प्रति जागरूक करता रहे।
विकास नए बनाए घर में सिर्फ 15 दिन रहा
विकास ठाकुर पहले रेलवे कॉलोनी में रहता था, लेकिन उन्होंने जैसे-जैसे तरक्की की तो अपना घर भी एल्डेको होम्स में बनाया। विकास बताते है कि घर बने को करीब 2 साल का समय हो चुका है, लेकिन स्पोर्ट्समैन की लाइफ ऐसी है कि वो अपने माता-पिता या बहन को समय तक नहीं दे पाता। जब से उसने घर बनाया तभी से सिर्फ 20 दिन वह अपने घर में रहा है। बाकी के समय वो बाहर ही प्रैक्टिस या कैंपों में रहा है।
माता पिता की वेट लिफ्टर ने सीने पर बनवाया टैटू।
माता-पिता से दूर रहता था, तो सीने पर ही बनवाया टैटू
विकास ने बताया कि माता-पिता से हर समय दूर रहना पड़ता था। इस कारण कई बार उनकी याद भी आती जब कही बाहर प्रैक्टिस या अन्य मैचों में जाना होता तो कई-कई महीने लग जाते। इसलिए उसने अपने माता और पिता की फोटो ही अपने सीने पर टैटू के रूप में बनवा ली।
विकास ने बताया कि जब कभी वह अकेला होता या माता-पिता की याद आती तो वह अपने सीने की तरफ देख लेता। विकास मुताबिक उसके पापा उसके पहले गुरू है और इसीलिए उसने अपने माता-पिता को सीने से लगाकर रखा है।
मेडल जीतने के बाद फेसबुक पेज पर मूसेवाला के विकास और लवप्रीत सिंह की फोटो।
विकास और लवप्रीत दोनों ही है मूसेवाला के फैन
बातचीत दौरान विकास और लवप्रीत ने कहा कि मसूवाले के फैन है। दोनों ने मेडल जीतने मूसेवाला स्टाइल में थपकी दी। वहीं लवप्रीत ने अपने किसी दोस्त से मुम्बई से एक पोस्टर एडिट कर बनवाया, जिसमें वह और विकास ठाकुर मूसेवाला के साथ नजर आ रहे और उस पोस्टर को विकास ने अपने फेसबुक पेज पर भी शेयर किया।
मेडल जीतने के बाद मूसेवाला स्टाइल में लवप्रीत सिंह। (फाइल फोटो)
हीरा सिंह ने तराश कर बनाया मुझे हीरा- लवप्रीत सिंह
पंजाब में अमृतसर के छोटे से गांव बल सिकंदर में पले-बढ़े लवप्रीत सिंह ने कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान वेटलिफ्टिंग में 109 KG वेट कैटेगरी में ब्रॉन्ज मेडल जीता। लवप्रीत बताते हैं कि गांव के वेटलिफ्टर हीरा सिंह से वह बहुत प्रभावित हुए थे।
हीरा सिंह ने ही आज उन्हें तराश कर हीरा बनाया। उन्होंने बताया कि हीरा सिंह 2011 में शहीद भगत सिंह गेम्स पटियाला में जब वेटलिफ्टिंग जीत कर आए थे तो पूरा गांव उनके स्वागत में लग गया। यह देख लवप्रीत के मन में भी आया कि एक दिन उसने भी हीरा सिंह जैसा नाम बनाना है।
लवप्रीत के मेडल जीतने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किया गया ट्वीट।
उसी दिन से लवप्रीत भी हीरा सिंह से अमृतसर में वेट लिफ्टिंग की कोचिंग लेने लग गया। लवप्रीत ने बताया कि हीरा सिंह को वह अपना आदर्श मानता है। वहीं रूपिंदर सिंह जो CRPF में है उनसे भी वह समय-समय पर वेटलिफ्टिंग के गुर सिखता रहते हैं। इन दोनों व्यक्तियों की वजह से आज लवप्रीत देश के लिए ब्रॉन्ज मेडल जीत कर लाया है।
लवप्रीत ने स्नैच में 163 और क्लीन एंड जर्क में 192 KG वेट उठाया। उन्होंने कुल 355 KG वेट उठाकर तीसरा स्थान हासिल किया। हालांकि इस ब्रॉन्ज मेडल तक पहुंचने का सफर लवप्रीत के लिए आसान नहीं रहा।
वेट लिफ्टिंग शुरू करने के 4 महीने बाद सोचा छोड़ दूं
लवप्रीत ने बताया कि वेटलिफ्टिंग जब उसने शुरू तो 4 से 5 महीने बाद उसका मन बदल गया और वह वेटलिफ्टिंग छोड़ने के मूड में था। लवप्रीत ने बताया कि उसकी रुचि कबड्डी में थी। वह कई गांवों में कबड्डी के मैच खेलने जाता रहता था।
उसने कबड्डी में भी कई कप अपने गांवों के लिए जीते हैं, लेकिन उसके उस्ताद हीरा सिंह और रूपिंदर सिंह ने उसके मन को डोलने नहीं दिया और उसे वेटलिफ्टिंग में ही निपुण करके कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए तैयार किया। लवप्रीत ने बताया कि उसने 8वीं कक्षा से वेट लिफ्टिंग शुरू कर दी थी। उसका एक छोटा भाई और बहन छोटी है।
भाई को हरप्रीत को अभी हाल ही में कुवैत भेजा है और बहन अभी IELTS की तैयारी कर रही है। पिता कृपाल सिंह और माता सुखविंदर कौर ने भी शुरू से उसकी पूरी स्पोर्ट की। उनकी ही बदौलत है कि प्रधानमंत्री मोदी ने उसके मेडल जीतने पर उसके नाम की ट्वीट किया।
विकास की बहन से बंधवाई राखी
लवप्रीत ने कहा कि दिल्ली जाने की वजह से वह उसेरक्षा बंधन घर पर मनाने का समय नहीं मिल पाया। इसलिए वह विकास ठाकुर के साथ ही दिल्ली के लिए रवाना हुए और गुरुग्राम में रहती विकास की पहन अभिलाषा से ही इस रक्षाबंधन पर राखी बंधवाई
लवप्रीत सिंह वेटलिफ्टर की बचपन में शादी में घोडियां ले जाते की फोटो।
कच्चे घर में बीता बचपन, शादियों में घोडियां लेकर जाता रहा
लवप्रीत सिंह ने बेशक 109 KG वेट कैटेगरी में मेडल जीता हो, लेकिन वह कभी इतना हैवी-वेट नहीं था। बचपन में दुबला-पतला दिखने वाला लवप्रीत ज्यादातर शांत रहता था। लवप्रीत के पिता किरपाल सिंह आज भी दर्जी का काम करते हैं।
बता दें लवप्रीत का सारा बचपन कच्चे घर में बीता। लवप्रीत के दादा गुरमेज सिंह ठेले पर सब्जियां बेचा करते थे। लवप्रीत भी स्कूल से आते ही दादा के साथ सब्जियां बेचने चले जाता। लवप्रीत ने कभी किसी काम को बड़ा-छोटा नहीं कहा। वह लोगों की शादियों में घोड़ियां भी लेकर जाता था। लवप्रीत की किस्मत ने पलटा तब खाया जब उसने नेवी की परीक्षा पास की।
परिवार को सरकार से आस
लवप्रीत ने इस मेडल को जीतने के लिए बचपन से लेकर अब कर बहुत मेहनत की है। जीतोड़ मेहनत के बाद लवप्रीत आज इस मुकाम तक पहुंचा है। अब सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि उसे राज्य में अच्छी नौकरी दे ताकि वह बाकी के युवाओं को भी नशों से दूर करके गेम्स में जाने के लिए प्रेरित करें।
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