86 साल से सहेज रखा है पिता का ओलिंपिक गोल्ड: दद्दा के मेडल मंदिर में रखते हैं ध्यानचंद के बेटे; शेर खान ने कई घर बदले, पर तमगे को आंखों से ओझल नहीं होने दिया
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- Dhyan Chand Ahmed Khan Olympic Medals Story | Independence Day Of India, 15 August 2022
झांसी/भोपाल6 मिनट पहलेलेखक: कृष्ण कुमार पांडेय
पिता की निशानी हर बेटे के लिए खास होती है, वह उसे आशीर्वाद के रूप में देखता है। अगर निशानी 1936 के ओलिंपिक गेम्स की हॉकी का गोल्ड मेडल हो तो वह और भी खास हो जाता है। इसे छूकर ही गर्व की अनुभूति होती है। आज मैंने भी कुछ ऐसा ही महसूस किया। जब मैंने ओलिंपियन असलम शेर खान के घर में उस ऐतिहासिक ओलिंपिक गोल्ड मेडल को छुआ। असलम शेर खान ने अपने पिता के उस मेडल को पिछले 86 सालों से सहेज कर रखा है। एक ऐसा ही ओलिंपिक गोल्ड हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के बेटे अशोक कुमार ने अपने झांसी स्थित निवास पर संजोए रखा है।
ये ओलिंपिक की उसी जीत के मेडल हैं, जो मेजर ध्यानचंद की कप्तानी वाली भारतीय टीम ने जर्मनी को उसी के घर में 8-1 से हराकर हासिल किए थे और वह तारीख थी 15 अगस्त 1936 । तब दुनिया के सबसे बड़े तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने पहली बार मैदान छोड़ दिया था। वह भारतीय हॉकी से हार गया था।
आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर हम लाए हैं ऐसे दो बेटों की कहानी, जो अपने पिता की धरोहर को पिछले 86 सालों से संजोए हुए हैं। तो आइए, सबसे पहले आपको लिए चलते हैं झांसी, जहां मेजर ध्यानचंद के बेटे अशोक कुमार हैं। उन्हीं की जुबानी सुनते हैं उनके पिता के ओलिंपिक गोल्ड के बारे में…
‘ओलिंपिक का गोल्ड मेरे लिए अमूल्य धरोहर है। मैं इसे देखते हुए बड़ा हुआ हूं, अपनी जिंदगी में इस गोल्ड की अहमियत शब्दों में बयां नहीं कर सकता। इसे छूते ही एक अलग-सी ऊर्जा का अहसास होता है। ऐसा लगता है मानों जैसे बाबूजी का आशीर्वाद मिल गया हो। मैं बाबूजी के मेडल को मंदिर के पास एक खास अलमारी में रखता हूं। जब भी कोई इसे देखने की इच्छा जाहिर करता है तो उसे दिखाकर वापस रख देता हूं। मैं जब भी झांसी आता हूं, सबसे पहले इसी कमरे में जाता हूं। हर दीपावली पर इस गोल्ड की पूजा होती है क्योंकि ये मेरी सबसे बड़ी संपत्ति है। समय-समय पर इसकी पॉलिशिंग कराई जाती है ताकि चमक बरकरार रहे। बाबूजी के मेडल से एक अलग ही भावनात्मक लगाव रहा है। वैसे तो मेरे घर में 5 ओलिंपिक गोल्ड हैं। इनमें से 3 बाबूजी ने जीते है और 2 चाचा रूप सिंह ने। मेरा ब्रॉन्ज अलग है।’
पिता ध्यानचंद के ओलिंपिक गोल्ड समेत 5 मेडल्स के साथ उनके बेटे अशोक कुमार।
झांसी के बाद चलते हैं भोपाल की कोहेफिजा कॉलोनी स्थित असलम शेर खान के घर…
सूफिया मस्जिद के पीछे स्थित कोठी में दाखिल होते हैं। तभी 1975 की वर्ल्ड चैंपियन हॉकी टीम के सदस्य असलम शेर खान सफेद पोशाक में आते हैं। उनके हाथ में एक मेडल केस है। जिसमें वह ऐतिहासिक मेडल है जिसकी चर्चा हर भारतीय गर्व के साथ करता है। मेरे कहने पर शेर खान ने अपने पिता के मेडल को निकाला और बड़े प्रेम से उसके बारे में बताने लगे। असलम कहते हैं- ‘ये अनमोल है, ये भारत का इतिहास है। ये भारत की शान है। यह गोल्ड भारतीय हॉकी की नींव है। आज मैं खुश हूं और हैरान भी, क्योंकि यह मेडल मेरे पास है। 86 साल एक बड़ा टाइम होता है। लोगों की जिंदगियां गुजर जाती हैं। इस दौरान हमने कई घर बदले। कई नई जगहों पर गए। कई दफा सामान शिफ्ट किया, लेकिन यह मेरे पास अब तक हैं, क्योंकि मैंने इसे हमेशा संभालकर रखा। 86 साल में कभी ऐसा नहीं हुआ, जब यह इधर-उधर हुआ हो। हमने इस मेडल के मामले में लापरवाही बरती ही नहीं। इसे हमेशा सुरक्षित स्थान पर रखा। मैंने और अब्बू ने बहुत सारे मेडल जीते हैं, लेकिन इसकी बात ही अलग है। कहते हैं कि मेरे अधिकांश मेडल इधर-उधर हो गए, लेकिन यह अभी तक मेरे पास है।’ वे बताते हैं कि अब्बू इसका खास ध्यान रखते थे। वे इसे रखने के लिए खास मेडल केस बनवाकर लाए थे। जहां तक मेरी बात है तो मैं इसे कीमती चीजें रखने वाली तिजोरी में रखता हूं। समय-समय पर इस पर सोने की पॉलिश करता हूं ताकि इस गोल्ड की चमक बरकरार रहे।
पिता के ओलिंपिक मेडल के साथ पूर्व हॉकी खिलाड़ी असलम शेरखान।
अब देखिए, बर्लिन ओलिंपिक 1936 की चैंपियन हॉकी टीम। जिसने मेजर ध्यानचंद की कप्तानी में जर्मनी को उसके घर में हराया। इस टीम ने ओलिंपिक गेम्स में गोल्ड की हैट्रिक भी पूरी की थी।
ये है 1936 के बर्लिन ओलिंपिक की गोल्ड मेडलिस्ट टीम।
अब फोटो में देखें मेजर ध्यानचंद के ओलिंपिक गोल्ड मेडल
1928 ओलिंपिक का गोल्ड मेडल।
1932 ओलिंपिक में भारत का गोल्ड मेडल।
भारत ने अमेरिका को उसके घर में 24-1 से हराया था। यह ओलिंपिक में किसी टीम की जीत का सबसे बड़ा अंतर है। (दूसरा हिस्सा)
1936 बर्लिन ओलिंपिक के फाइनल में भारत ने जर्मनी को 8-1 से हराया था।
जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने ध्यानचंद को जर्मनी से खेलने का ऑफर दिया था। (दूसरा हिस्सा)
कप्तान मेजर ध्यानचंद को दिया गया स्पेशल मेडल।
स्पेशल मेडल में हिटलर का भी उल्लेख था। (दूसरा हिस्सा)
1956 में मेजर ध्यानचंद को पद्मभूषण से नवाजा गया।
ध्यानचंद पद्मभूषण पाने वाले इकलौते हॉकी खिलाड़ी हैं। (दूसरा हिस्सा)
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