1983 वर्ल्डकप में था एक लंबे हैंडल वाला बैट: कपिल देव ने इससे जड़े 175 रन, तो भारत फाइनल में पहुंचा
39 मिनट पहलेलेखक: अभिषेक पाण्डेय
दिसंबर 1979 की बात है। पर्थ स्टेडियम में ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच टेस्ट मैच चल रहा था। ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज डेनिस लिली ने एक बॉल को हिट किया। जोर से मारने के बावजूद गेंद बाउंड्री लाइन तक नहीं पहुंच सकी, लेकिन गेंद का शेप बिगड़ गया। थोड़ी ही देर में इंग्लैंड के कप्तान माइक ब्रेयरली को शक हुआ। उन्होंने अंपायर से लिली के बैट की शिकायत की। अंपायर ने जांच की तो पाया कि लिली एल्युमीनियम के बैट से खेल रहे थे।
उस समय तक क्रिकेट का बैट किस चीज से बना हो, इसे लेकर कोई नियम ही नहीं था। हालांकि इस घटना के बाद ये नियम बना कि क्रिकेट का बैट केवल लकड़ी का होना चाहिए। क्रिकेट बैट की शुरुआत से लेकर उसके मॉडर्न वर्जन तक पहुंचने का सफर ऐसे ही कई रोचक किस्सों से भरा पड़ा है। ‘क्रिकेट किट के किस्से’ सीरीज में आज बात बैट की…
17वीं सदी में मिलता है क्रिकेट बैट का पहला जिक्र
28 अगस्त 1624 को इंग्लैंड में हुए एक लोकल मैच के दौरान जैस्पर विनाल नामक फील्डर की क्रिकेट बैट की वजह से मौत हो गई थी। ये खबर अखबारों में छपी और मामला कोर्ट तक पहुंचा। इसी खबर को लेकर बैट का पहली बार जिक्र हुआ था।
उस मैच में विनाल बल्लेबाज एडवर्ड टाय के करीब फील्डिंग कर रहे थे। टाय ने एक गेंद को हिट किया जो ऊपर हवा में गई, विनाल कैच लेने के लिए गेंद के नीचे पहुंचे। लेकिन टाय आउट होने से बचने के लिए गेंद को कैच होने से पहले ही दोबारा हिट करने पहुंच गए। टाय की नजर गेंद पर ही थी और उन्होंने गेंद की जगह बैट से विनाल के सिर को हिट कर दिया। इससे टाय सन्न रह गए और मैदान के एक कोने में जाकर कहा कि ये एक्सीडेंट था।
इस घटना में घायल होने के 13 दिन बाद 10 सितंबर 1624 को विनाल की मौत हो गई थी। ये क्रिकेट इतिहास में मैदान पर किसी क्रिकेटर की मौत की पहली घटना मानी जाती है।
उस समय तक ये नियम नहीं था कि कोई बल्लेबाज एक गेंद को दो बार हिट नहीं कर सकता। इसके बाद 1647 में ऐसी ही एक घटना में इंग्लैंड के वेस्ट ससेक्स में हेनरी ब्रैंड नामक क्रिकेटर की मौत हो गई थी। करीब 100 साल बाद 1744 में ये नियम बना कि कोई भी बल्लेबाज जानबूझकर गेंद को दो बार स्ट्राइक नहीं कर सकता है, ऐसा करने पर उसे आउट माना जाएगा।
सबसे पुराने बैट का शेप मॉडर्न हॉकी स्टिक की तरह था। तब क्रिकेट में गेंद को ओवर-द-आर्म यानी हाथ घुमाकर फेंकने का नियम नहीं था और अंडर-आर्म बॉलिंग होती थी। मतलब गेंद बिना हाथ घुमाए, हाथ को कमर के पास लाकर फेंकी जा सकती थी। गेंदों में आज की तरह स्पीड नहीं होती थी, ऐसे में हॉकी स्टिक जैसे बैट से भी उन्हें खेला जा सकता था।
ये तस्वीर इंग्लैंड में विलेज क्रिकेट के शुरुआती दिनों की है, जो दिखाती है कि शुरुआती बैट कैसे होते थे। (साभार: ICC)
1771 में तीनों स्टंप जितना चौड़ा बैट लेकर आ गया बल्लेबाज
17वीं सदी के अंत तक क्रिकेट बैट हॉकी स्टिक की जगह नीचे से आयताकार शेप लेने लगे थे। हालांकि आज के बैट की तुलना में उनमें काफी अंतर था। तब तक बैट के साइज और शेप को लेकर कोई नियम नहीं थे।
क्रिकेट बैट को लेकर पहला नियम बनने का किस्सा बेहद रोचक है। सितंबर 1771 में इंग्लैंड की सरे काउंटी में चेर्त्से और हैम्बलडन के बीच एक क्रिकेट मैच खेला गया था। चेर्त्से के बल्लेबाज शॉक वाइट तीनों विकेट के बराबर चौड़ाई वाला बैट लेकर बैटिंग के लिए उतरे थे।
क्रिकेट इतिहास में ये घटना ‘मॉन्स्टर बैट इंसिडेंट ऑफ 1771’ के नाम से चर्चित है। इस मैच में शॉक वाइट ने कितने रन बनाए थे, इसका रिकॉर्ड मौजूद नहीं है, लेकिन हैम्बलडन के 218 रन बनाने की बाद वाइट की टीम चेर्त्से इस मैच में 1 रन से हारी थी। मैच के बाद शॉक के विशालकाय बैट को लेकर हैम्बलडन के गेंदबाज थॉमस ब्रेट ने शिकायत की थी।
1771 की मॉन्स्टर बैट घटना के बाद क्रिकेट बैट को लेकर पहला नियम 1774 में बना और पहली बार क्रिकेट के बैट की चौड़ाई 4.25 इंच या108 मिमी तय कर दी गई। बैट की चौड़ाई का ये नियम आज भी लागू है।
इंग्लैंड में शॉक वाइट नामक बल्लेबाज तीनों विकेट जितनी चौड़ाई वाला मॉन्स्टर बैट लेकर खेलने उतरा था। इसी के बाद पहली बार बैट की चौड़ाई तय हुई। (ये तस्वीर प्रतीकात्मक है।)
1835 में तय हुई क्रिकेट बैट की लंबाई
क्रिकेट के पहले नियम 1744 में बने थे। क्रिकेट बैट का पहला नियम 1774 में बना था। क्रिकेट के नियमों की संचालन करने वाली संस्था मेरिलबोन क्रिकेट क्लब यानी MCC की स्थापना 1777 में हुई थी। MCC ने 1835 में पहली बार क्रिकेट बैट की लंबाई तय करते हुए इसे 38 इंच या 965.2 मिमी तय कर दिया था। ये नियम अब भी बरकरार है।
1979 में एल्युमिनियम बैट लेकर उतरे लिली, तब बना लकड़ी के बैट का नियम
1979 में ऑस्ट्रेलिया के डेनिस लिली इंग्लैंड के खिलाफ पर्थ टेस्ट में एल्युमिनियम बैट लेकर खेलने उतर गए थे। खास बात ये है कि इस टेस्ट से कुछ दिन पहले भी लिली वेस्टइंडीज के खिलाफ एक टेस्ट मैच में भी एल्युमिनियम बैट से खेले थे, लेकिन वो जल्द ही आउट हो गए थे और विंडीज खिलाड़ियों ने इस बात पर ज्यादा ध्यान ही नहीं दिया था।
इंग्लैंड के खिलाफ जब लिली एल्युमिनियम बैट से खेलने लगे तो गेंद का शेप बिगड़ने लगा था। इंग्लैंड के कप्तान माइक ब्रेयरली ने इसकी शिकायत अंपायरों से की। खुद ऑस्ट्रेलियाई कप्तान ग्रेग चैपल को लगा कि इस बैट से हिट करने पर गेंद ज्यादा दूर नहीं जा रही है। ऐसे में उन्होंने भी लिली को इस बैट से खेलने से रोका।
आखिरकार काफी चर्चा के बाद लिली इसके लिए माने लेकिन उन्होंने गुस्से में एल्युमिनियम बैट को दूर फेंक दिया और फिर लकड़ी के बैट से खेले। इस विवाद के बाद MCC ने एल्युमिनियम बैट पर बैन लगाते हुए ये नियम बनाया कि क्रिकेट का बैट केवल लकड़ी का बना होना चाहिए।
एल्युमिनियम बैट डेनिस लिली के दोस्त की कंपनी ने बनाया था। लिली ने बाद में कहा कि इसका इस्तेमाल करना मार्केटिंग ट्रिक थी। इस घटना के बाद ये बैट हिट हो गया और बैन लगने से पहले ये खूब बिका।
कपिल देव ने स्लाजेंजर बैट से 1983 वर्ल्ड कप में ठोक डाले थे 175 रन
1983 वर्ल्ड कप में जिम्बाब्वे के खिलाफ भारत के करो या मरो के मैच में कपिल देव ने एक खास किस्म के बैट से खेलते हुए 175 रन की नाबाद पारी खेली थी। कपिल जब बैटिंग के लिए उतरे तो भारत 17 रन पर 5 विकेट गंवा चुका था। इसके बाद कपिल ने स्लाजेंजर WG बैट से खेलते हुए जिम्बाब्वे के गेंदबाजों की मैदान के चारों तरफ जमकर धुनाई की और 16 छक्कों और 6 छक्कों की मदद से 138 गेंदों में 175 रन ठोक दिए थे।
हाल ही में कपिल देव पर बनी फिल्म ’83’ की रिलीज के बाद सोशल मीडिया में दावा किया जाने लगा कि कपिल ने जिस बैट से 175 रन की धमाकेदार पारी खेली थी वो मंगूज बैट था। लेकिन ये सच नहीं है। मंगूज बैट 2010 में बने। कपिल जिस स्लाजेंजर WG बैट से खेले वो बैट ‘शोल्डर लेस मॉडल’ वाला बैट था और उसका ब्लेड उस जमाने के बैट की तुलना में छोटा था। कुल मिलाकर ये बैट इस तरह डिजाइन किया गया था कि इससे आक्रामक शॉट आसानी से खेले जा सकते थे और कपिल इसमें कामयाब भी रहे।
कपिल की कप्तानी पारी के दम पर ही भारत जिम्बाब्वे को 31 रन से मात देते हुए टूर्नामेंट में अपना सफर जारी रखने में कामयाब रहा और फाइनल में पहुंचा। फाइनल में वेस्टइंडीज को हराते हुए भारत ने पहली बार वर्ल्ड कप जीत लिया।
जिम्बाब्वे के खिलाफ अपने खास स्लाजेंजर WG बैट से कपिल देव ने 175 रन की धमाकेदार पारी खेली थी। इस बैट में शोल्डर नहीं थे।
2005 में पोंटिंग के ग्रेफाइट का कोटिंग वाले बैट पर मचा बवाल
2005 में ऑस्ट्रेलिया के रिकी पोंटिंग के अपने बल्ले पर ग्रेफाइट की कोटिंग लगाकर खेलने को लेकर विवाद हुआ था। पोटिंग के इस काहुना बैट को ऑस्ट्रेलिया की कूकाबूरा कंपनी ने बनाया था। कंपनी ने इस बैट के ब्लेड यानी सामने के हिस्से पर कार्बन-ग्रेफाइट कोटिंग की थी। 2005 में ICC ने MCC से इस मामले को देखने को कहा। फरवरी 2006 में MCC ने ग्रेफाइट कोटिंग वाले इस बैट को अमान्य घोषित करते हुए बैन लगा दिया था।
खास बात ये है कि इस बैट पर बैन लगने से पहले ही करीब 5 साल तक पोटिंग इस ग्रेफाइट कोटिंग वाले बैट से खेल चुके थे। विज्डन के अनुसार, ग्रेफाइट कोटिंग वाले बैट से खेलते हुए पोंटिंग ने दिसंबर 2003 से अप्रैल 2005 तक टेस्ट में 70.57 और वनडे में 42.57 के औसत से रन बनाए। ग्रेफाइट कोटिंग वाले बैट पर बैन लगने का पोंटिंग की बैटिंग पर कोई असर नहीं दिखा और इसके बाद उन्होंने मार्च 2006 से 2007 वर्ल्ड कप खत्म होने के दौरान टेस्ट में 74.33 और वनडे में 51.32 के औसत से रन बनाए। पोंटिंग के अलावा डेमियन मार्टिन, जस्टिन लैंगर और सनथ जयसूर्या भी ऐसे बैट से खेले थे।
2006 में MCC ने जब रिकी पोंटिंग के ग्रेफाइट कोटिंग वाले बैट पर बैन लगाया, तब तक पोंटिंग 5 साल इस बैट से खेल चुके थे।
2010 में मैथ्यू हेडेन और रैना मंगूज बैट से खेले थे
T20 और खासकर IPL क्रिकेट के उभार के साथ ही ऐसे बल्ले बनने लगे, जिससे ताबड़तोड़ शॉट खेलना आसान हो गया। मंगूज बैट से खेलते हुए मैथ्यू हेडेन ने IPL 2010 में खूब सुर्खियां बटोरी थीं। CSK के लिए एक मैच में हेडेन ने 43 गेंदों में 93 रन जड़ दिए थे।
आम बैट की तुलना में मंगूज बैट का ब्लेड 33% छोटा और हैंडल 43% ज्यादा लंबा था। मंगूज बैट के स्ट्रक्चर की वजह से इसका स्वीट स्पॉट 120% बढ़ गया था। हेडेन इस बैट से IPL 2010 में कामयाब रहे, लेकिन ये बैट ज्यादा सफल नहीं हुआ।
सुरेश रैना ने भी कुछ दिनों तक इस बैट का इस्तेमाल किया था, लेकिन इससे गेंद को डिफेंड करने में दिक्कत हो रही थी, इसलिए वह फिर से नॉर्मल बैट की ओर लौट आए।
2010 IPL में ऑस्ट्रेलिया के मैथ्यू हेडेन ने लंबे हैंडल और छोटे ब्लेड वाले मंगूज बैट से खेलकर सुर्खियां बटोरी थीं।
शुरुआत से अब तक, बैट से जुड़े ऐसे तमाम किस्से हैं। इन्हें हमने एक ग्राफिक में पिरोया है…
अब जानिए कि अभी जो बल्ले इस्तेमाल होते हैं, उनके ऑफिशियल नियम क्या है…
अब अलग-अलग खिलाड़ियों के बैट की कुछ खासियतें जानते हैं…
- 20वीं सदी की शुरुआत में डॉन ब्रैडमैन, विजय मर्चेंट और वॉली हैमंड जैसे महान बल्लेबाजों ने एक ही शेप और साइज के बैट इस्तेमाल किए, लेकिन उनके वजन अलग थे। उस समय औसतन बैट 900 ग्राम से 1 किलो वजन के थे। 1924-1934 तक ऑस्ट्रेलिया के लिए खेले विल पोंसफोर्ड करीब 1.30 किलो के बैट का इस्तेमाल करते थे, जो उस समय सबसे भारी बैट माना जाता था।
- 1960 के दशक तक विंडीज बल्लेबाज क्लाइव लॉयड और अफ्रीकी बल्लेबाज ग्रीम पोलाक 1.5 किलो वजन वाले बैट का इस्तेमाल करने लगे थे। हालांकि भारी बैट से ताकतवर शॉट तो लगाए जा सकते थे, लेकिन इनसे कुछ शॉट खेलना मुश्किल था।
- ‘फादर ऑफ इंडियन क्रिकेट’ कहे जाने वाले महान बल्लेबाज रणजीतसिंहजी ने 1 किलो से भी कम वजन के बैट से खेलते हुए लेग ग्लांस जैसे शॉट को ईजाद किया था।
- वनडे और टी20 क्रिकेट के आने के साथ आधुनिक क्रिकेट में भारी बैट के लिए दीवानगी बढ़ती गई। भारत के महान बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर और साउथ अफ्रीका के लांस क्लूजनर करीब 1.5 किलो वजन वाले बैट से खेलना पसंद करते थे। इसकी वजह से सचिन को महज 25 साल की उम्र में बैक इंजरी का सामना करना पड़ा।
- सचिन ने अपने बैट का वजन करियर में आगे जाकर थोड़ा घटा लिया था। डेविड वॉर्नर के बल्ले का वजन तो 1.2-1.4 किलो तक ही था, लेकिन उन्होंने गैरी निकोल्स के बने 85 मिमी चौड़ाई वाले बल्लों के इस्तेमाल से विवाद खड़ा कर दिया था। 2017 में MCC ने बैट की डेप्थ की लिमिट 67 मिमी तय कर दी।
आधुनिक बैट के वजन घटे, लेकिन डेप्थ और एज बढ़ने से क्षमता बढ़ी
आधुनिक बैट में पिछले हिस्से को ज्यादा उभारते हुए एज को और चौड़ा कर दिया गया। इस तरह से बने बैट से सारा फोकस ‘स्वीट स्पॉट’ पर शिफ्ट हो गया। स्वीट स्पॉट ही बैट का वो हिस्सा होता है, जिससे सबसे बेहतरीन शॉट खेल सकते हैं। स्वीट स्पॉट फिक्स करने के बाद सारा ध्यान बैट के वजन को कम करने पर लगाया गया। इसमें सबसे अहम रोल निभाता है विलो लड़की का सूखापन। विलो लकड़ी की नमी घटाने से बैट न केवल हल्के हुए बल्कि उनकी ताकत भी बरकरार रही।
19वीं सदी में बैट के लंबे समय तक टिकने पर ज्यादा फोकस था, लेकिन आज के क्रिकेटर इसकी चिंता नहीं करते और अपने साथ कई बैट रखते हैं। अब एक सीजन में आमतौर पर बल्लेबाज करीब 10 बैट तक यूज करते हैं। किसी बैट की क्षमता इस बात ये तय होती है कि उसे बनाते समय लकड़ी को कितनी देर तक प्रेस किया गया है। जितना ज्यादा लकड़ी को दबाया जाता है, उतना ही उसकी क्षमता घटती है, हालांकि ऐसे बैट ज्यादा लंबे समय तक टिकते हैं। इसीलिए आधुनिक क्रिकेटरों की डिमांड के अनुसार बैट बनाते समय लकड़ी को ज्यादा दबाया नहीं जाता है, इससे ये कम टिकाऊ होते हैं, लेकिन इनकी क्षमता कई गुना ज्यादा बढ़ जाती है।
आधुनिक क्रिकेट के बैट कुछ दशक पहले के बैट की तुलना में हल्के होते हैं। लेकिन इन बैट का एज और चौड़ाई पहले से कई गुना ज्यादा बढ़ गई है। यही वजह कि धोनी, रोहित, डिविलियर्स और कोहली जैसे बल्लेबाज सचिन और क्लूजनर की तुलना में हल्के बैट का इस्तेमाल करते हुए भी बड़े आराम से आक्रामक शॉट खेलते हैं।
पिछले कुछ दशक में बैट में हुए बदलावों पर MCC के चेयरमैन रहे माइक ब्रेयरली ने 2017 में एक इंटरव्यू में कहा था, ‘1905 में बैट की चौड़ाई 16 मिमी थी, 1980 तक ये बढ़कर 18 मिमी हुई और अब प्रोफेशनल क्रिकेट में बैट की औसतन चौड़ाई 35-40 मिमी हो गई है, जो कई बार 60 मिमी तक होती है। ये दिखाता है कि कितनी तेजी से बदलाव हुआ है।’
इंग्लैंड के विलो पेड़ से शुरुआत फिर कश्मीरी विलो से बनने लगे बैट
क्रिकेट बैट आमतौर पर इंग्लैंड में विलो पेड़ की लकड़ी से बनते हैं। फिर क्रिकेट के दुनिया भर में प्रसार के साथ ही स्थानीय स्तर भी बैट बनने लगे। ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में भी इंग्लैंड के विलो पेड़ उगाने के प्रयास किए गए। अंग्रेजों की वजह से विलो कश्मीर पहुंचा और 19वीं सदी के बाद कश्मीरी विलो के बैट भी बनने लगे, जो काफी प्रसिद्ध भी हुए।
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