हरनूर की क्रिकेट फैमिली: दादा से लेकर पोते तक सब ‘गेम ऑफ जेंटलमैन’ को समर्पित, सभी रणजी प्लेयर और अच्छे कोच
जालंधर3 घंटे पहलेलेखक: सुनील राणा
पंजाब के जालंधर में एक परिवार ऐसा है, जो पूरी तरह ‘गेम ऑफ जेंटलमैन’ यानी क्रिकेट को समर्पित है। इस परिवार में दादा, ताऊ से लेकर पोते, भतीजे तक सब उम्दा क्रिकेटर हैं और इनमें से लगभग सभी रणजी खेले हुए हैं। घर में माहौल भी पूरा क्रिकेट वाला ही है।
घर में होश संभालते ही बच्चे के हाथ में बल्ला थमा दिया जाता है। जैसे-जैसे वह बड़ा होता है उसी तरीके से उसका प्रैक्टिस लेवल भी बढ़ता जाता है। जी हां, इसी फैमिली से हैं यूएई में चल रही अंडर-19 चैंपियनशिप में अपनी बल्लेबाजी के दम पर धमाल मचाने वाले हरनूर। हरनूर के जीन में ही क्रिकेट हैं, क्योंकि उनके पापा वीर इंद्र सिंह और दादा सरदार राजिंदर सिंह जहां रणजी खेले हुए हैं, वहीं वो अच्छे कोच भी हैं।
हरनूर के चाचा हरमिंदर सिंह पन्नू बीसीसीआई में लेवल-टू के कोच हैं जबकि हरनूर के दूसरे चाचा जयवीर सिंह भी रणजी खिलाड़ी रहे हैं। दादा सरदार राजिंदर सिंह पंजाब क्रिकेट एसोसिएशन के संयुक्त सचिव रहने के साथ-साथ पंजाब के उम्दा क्रिकेट कोच तो रहे ही हैं, साथ ही वह क्रिकेट सिलेक्शन कमेटी के सदस्य भी रहे हैं।
दादा ने सिखाए पोते को बल्लेबाजी के गुर
हरनूर के दादा सरदार राजिंदर सिंह और पिता वीर इंद्र सिंह
अंडर-19 में शतक पर शतक जड़ने वाले हरनूर को क्रिकेट की दुनिया में लाने के लिए भले ही उनके पापा वीर इंद्र और चाचा हरमिंदर पन्नू का योगदान है, लेकिन हरनूर के दादा सरदार राजिंदर सिंह की मेहनत को भी भुलाया नहीं जा सकता। जब से हरनूर ने होश संभाला है, उनमें क्रिकेट की नींव दादा ने ही रखी। रोज सुबह उठकर हरनूर को क्रिकेट के तकनीकी दांवपेच सिखाने का काम उन्होंने ही शुरू किया था।
बकौल कोच राजिंदर सिंह उन्होंने हरनूर को सीमेंट वाली नेट लगी पिच पर मशीन से 125 से लेकर 130-35 की स्पीड पर बॉल फेंक कर इतनी रफ्तार वाली बॉल का मुकाबला कैसे करना है, यह अंडर-14 में ही सिखा दिया था। यही वजह है कि आज अंडर-19 में 140 से लेकर 145 तक की पेस देने वाले गेंदबाजों की बॉल को हरनूर बाउंड्री से बाहर पहुंचा देते हैं।
शुरू से ही हरनूर में थी खेल की लगन
अपने चाचा और क्रिकेट कोच हरमिंदर पन्नू के साथ हरनूर का फाइल फोटो
हरनूर के दादा राजिंदर सिंह और पापा वीर इंद्र सिंह ने बताया कि हरनूर में बचपन से ही क्रिकेट के प्रति काफी लगन थी। सुबह उठकर अपने दादा और पापा के साथ ग्राउंड में जाना, वहां पर बल्लेबाजी करना हरनूर का शौक रहा है। चूंकि घर में पहले से ही क्रिकेट का माहौल था तो धीरे-धीरे हरनूर अपने-आप ही माहौल में ढलते हुए प्रोफेशनल क्रिकेटर बन गया।
हरनूर के पापा वीर इंद्र सिंह ने कहा कि हरनूर सुबह और शाम दो घंटे प्रैक्टिस करता है। दो घंटे वाली उसकी प्रैक्टिस आम प्रैक्टिस नहीं होती बल्कि कड़ी मशक्कत वाली प्रैक्टिस होती है। इन दिनों चंडीगढ़ में फर्स्ट ईयर के स्टूडेंट हरनूर अपने चाचा हरमिंदर पन्नू जो कि बीसीसीआई में लेवल-टू के कोच हैं, के पास रहकर क्रिकेट के गुर सीख रहा है और चंडीगढ़ की तरफ से ही खेल रहा है।
आठ साल की उम्र में खेलनी शुरू की क्रिकेट
विजय मर्चेंट ट्रॉफी के साथ हरनूर
हरनूर के पापा वीर इंद्र सिंह खुद रणजी खिलाड़ी होने के साथ-साथ अच्छे कोच भी है। उन्होंने बताया कि उनके घर में माहौल ऐसा है कि जब बच्चा होश संभालता है तो उसे यह नहीं कहा जाता कि डॉक्टर या इंजीनियर बनना है बल्कि यह कहा जाता है कि क्रिकेट खेलना है। यदि इसमें सफल नहीं हो पाओगे तो फिर आगे के बारे में सोचा जाएगा। उन्होंने बताया कि हरनूर ने आठ साल की उम्र में ही क्रिकेट खेलनी शुरू की थी। हरनूर के दादा कोच राजिंदर सिंह उसे घर पर ही क्रिकेट के ड्रिल्स और बेसिक सिखाते थे। दस साल की उम्र में जब ऐसा लगने लगा कि अब वो अच्छे तरीके से खेल सकता है तो चंडीगढ़ क्लब की तरफ से खेलने लगा।
हरनूर के चाचा हरमिंदर पन्नू ने वहां पर उसे ट्रेनिंग देनी शुरू की, क्योंकि वो लेवल-टू का कोच होने के नाते यह जानते हैं कि क्रिकेट में नया अपडेट क्या है और कैसे प्रैक्टिस करवानी है। उन्हीं की बदौलत हरनूर ने अंडर-16 में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया। विजय मर्चेंट ट्रॉफी में चार सौ से ज्यादा रन बनाए। फिर अंडर-19 चंडीगढ़ की टीम में सिलेक्शन के बाद चार सौ रन बनाए। वीनू मांकड़ ट्रॉफी में महाराष्ट्र के खिलाफ खेलते हुए नाबाद 110 रन बनाए थे और चैलेंजर ट्रॉफी में भी चार सौ से ज्यादा रन का रिकॉर्ड है।
हरनूर के चाचा हैं भूपिंदर सिंह जूनियर
घरेलू क्रिकेट में दूसरे विकेट की साझेदारी करते हुए दो सौ ज्यादा रन बनाने का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने वाले भूपिंदर सिंह जूनियर भी हरनूर के चाचा हैं। हरनूर के पापा वीर इंद्र सिंह ने बताया कि उनके ताया सरदार महिंदर सिंह भी रणजी खिलाड़ी रहे हैं और इसके बाद वह चंडीगढ़ क्रिकेट एसोसिएशन के कई सालों तक सचिव भी रहे। उनका छोटा बेटा भूपिंदर सिंह जूनियर है जिसका रणजी में दो सौ रन का रिकॉर्ड आज तक कोई नहीं तोड़ पाया है।
ताया का बड़ा बेटा गुरप्रीत सिंह भी रणजी खिलाड़ी हैं। आगे गुरप्रीत के दो बच्चे भी मुश्ताक अली ट्रॉफी में खेल चुके हैं और अब विजय हजारे चैंपियनशिप में अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमें हरनूर से भी पूरी उम्मीद है कि वह भी रणजी में रिकॉर्ड बनाएगा।
87 की उम्र में भी बच्चों को सिखा रहे क्रिकेट
भले ही कोच सरदार राजिंदर सिंह की उम्र 87 साल है, लेकिन देखने में आज भी वह यंग नजर आते हैं। उम्र के इस पड़ाव में भी आवाज में वही खनक और वही रुआब है। देश के नामी स्पिनर गेंदबाज बिशन सिंह बेदी से लेकर बिक्रम राठौर, अश्विनी मिन्ना जैसे स्टार क्रिकेटरों को कोचिंग देने वाले सरदार राजिंदर सिंह की यह क्रिकेट के प्रति दीवानगी ही है कि आज भी खेल के मैदान से उनका मोह छूटा नहीं है। कई क्रिकेट खिलाड़ियों को रणजी का रास्ता दिखा चुके कोच राजिंदर सिंह अब 87 की उम्र में भी बच्चों को क्रिकेट के गुर सिखा रहे हैं।
हरभजन सिंह के क्रिकेट गुरु देवेंदर अरोड़ा के भी वह गुरु रहे हैं। रिटायरमेंट के बाद भी घर पर आराम करने की बजाय घर के पास ही सिमेंटेड पिच पर बॉल फेंकने वाली मशीन लगाकर बच्चों को प्रैक्टिस करवाते हैं। सरदार राजिंदर सिंह ने बताया कि वह पंजाब के बहुत ही पिछड़े क्षेत्र तरनतारन से संबंध रखते हैं। वहां से निकल कर उन्होंने कड़ी मेहनत के दम पर 1960 में पहला रणजी मैच खेला था। उन्होंने बताया कि वह रणजी में चार बार खेले। इसके बाद एनआईएस से ट्रेनिंग लेकर कोच बन गए।
कोच बनने के बाद तीस-पैंतीस साल तक डीएवी कालेज जालंधर में बतौर क्रिकेट कोच उन्होंने अपनी सेवाएं दी। इसके बाद वह पंजाब क्रिकेट एसोसिएशन (पीसीए) के संयुक्त सचिव रहे। प्रदेश में क्रिकेट सिलेक्शन टीम के सदस्य भी रहे हैं।
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