सिल्वर मेडलिस्ट देवेंद्र झाझरिया की कहानी: हाईटेंशन वायर की चपेट में आने के बाद बाएं हाथ को काटना पड़ा; पहले लकड़ी के भाले से करते थे प्रैक्टिस, वाइफ कबड्डी प्लेयर
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- Tokyo Paralympics: Devendra Jhajharia Grabs Silver And Sundar Singh Gurjar Claims Bronze Medal | Men’s Javelin Throw F46 Final
नई दिल्लीएक मिनट पहले
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देवेंद्र झाझरिया का यह तीसरा पैरालिंपिक मेडल रहा। इससे पहले देवेंद्र दो गोल्ड मेडल भी जीत चुके हैं।
राजस्थान के चूरू जिले के जयपुरिया खालसा गांव के देवेंद्र झाझरिया ने टोक्यो पैरालिंपिक गेम्स में भारत को सिल्वर मेडल दिलाया। खेल रत्न से सम्मानित देवेंद्र जेवलिन थ्रो के फाइनल में 64.35 मीटर के थ्रो के साथ दूसरे नंबर पर रहे। उनका यह तीसरा पैरालिंपिक मेडल रहा। इससे पहले देवेंद्र दो गोल्ड मेडल भी जीत चुके हैं। मेडल जीतने के बाद वह काफी खुश नजर आए। हालांकि, इस खुशी के पीछे देवेंद्र की संघर्षभरी कहानी है। आइए जानते हैं देवेंद्र के संघर्ष की कहानी उन्हीं की जुबानी…
”जब मैं 8 साल का था तो अपने गांव में ही पेड़ पर चढ़ रहा था। पेड़ से एक हाईटेंशन वायर जा रहा था। मुझे उससे करंट लगा और मेरा बायां हाथ कोहनी से काटना पड़ा। उसके बाद से घर से बाहर निकलना मेरे लिए चुनौती बन गया था। बच्चे मुझे अपने साथ खिलाते नहीं थे।
ऐसे में मेरे मां जीवनी देवी ने मुझे नई जिंदगी दी। उन्होंने मुझे खेलने के लिए जबर्दस्ती बाहर भेजा। वो चाहतीं तो मुझे पढ़ाई करने के लिए भी कह सकती थीं। उस दिन मां ने मुझे घर से बाहर नहीं निकाला होता तो शायद मैं भी पैरालिंपिक में दो गोल्ड मेडल जीतने में सफल नहीं होता।
लकड़ी के भाले से घर में ही करता था प्रैक्टिस
यह 1995 की बात है। मैं रतनपुरा के सरकारी स्कूल में पढ़ता था। वहां कुछ बच्चे जैवलिन की प्रैक्टिस करते थे। उनमें कई स्टेट लेवल के प्लेयर भी थे, लेकिन वे मुझे अपने साथ नहीं खिलाते थे। मैं उन्हें देखता रहता। फिर एक दिन मैंने घर में ही लकड़ी का भाला बनाया और प्रैक्टिस करने लगा।
पहली बार जब डिस्ट्रिक्ट चैंपियन बना तो उस दिन लगा जैसे मैंने दुनिया जीत ली। डिस्ट्रिक्ट चैंपियन में जीता वह गोल्ड भी मेरे लिए पैरालिंपिक के गोल्ड से कम नहीं था। बस वहीं से मेरे खेलों का सफर शुरू हुआ।
कबड्डी प्लेयर से की शादी, एक ही स्कूल में पढ़ते थे
पत्नी मंजू खुद भी कबड्डी प्लेयर रही हैं। दोनों एक ही स्कूल में पढ़ते थे। कहती हैं कभी भी मेरे मन में ऐसा विचार नहीं आया कि इनके एक हाथ नहीं है। उन्होंने जो उपलब्धि हासिल की है वह हजारों हाथों के बराबर है। 2007 में जब मुझे पता चला कि इनके साथ मेरी शादी हो रही है तो मैं खुशी-खुशी राजी हो गई थी।
रियो मेडल के बाद मिली पहचान
2004 एथेंस पैरालिंपिक में जब मैंने गोल्ड जीता था उस समय ज्यादा पहचान नहीं मिली थी। उस समय सोशल मीडिया ज्यादा नहीं था। अब समय बदल गया है। अब केंद्र सरकार ओलिंपिक और पैरालिंपिक को बराबर मानती है और मीडिया में भी पैरालिंपिक में मेडल जीतने वाले सुर्खियां बनते हैं। 2004 और 2016 दोनों में मैंने वर्ल्ड रिकॉर्ड के साथ गोल्ड जीता था, लेकिन असली पहचान और सम्मान रियो के बाद मिला है।”
देवेंद्र नहीं लगा पाए गोल्डन हैट्रिक
देवेंद्र गोल्डन हैट्रिक पूरी नहीं कर पाए। श्रीलंका के दिनेश प्रियान हेराथ ने 67.79 मीटर थ्रो के साथ गोल्ड मेडल अपने नाम किया। श्रीलंकाई एथलीट ने इसके साथ देवेंद्र के वर्ल्ड रिकॉर्ड को भी तोड़ दिया। उनके नाम पर पहले 63.97 मीटर के साथ वर्ल्ड रिकॉर्ड दर्ज था।
सुंदर सिंह ने ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया
देवेंद्र के अलावा सुंदर सिंह गुर्जर ने 64.01 मीटर भाला फेंका और तीसरे स्थान पर रहे। 25 साल के सुंदर ने 2015 में एक दुर्घटना में अपना बायां हाथ गंवा दिया था। जयपुर के रहने वाले गुर्जर ने 2017 और 2019 वर्ल्ड पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीते थे। इसके अलावा 2018 जकार्ता पैरा एशियाई खेलों में सिल्वर मेडल अपने नाम किया था। भारत के एक अन्य एथलीट अजीत सिंह 56.15 मीटर जेवलिन थ्रो के साथ 8वें स्थान पर रहे।
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