मिलिए भारत के नए बैडमिंटन सुपर स्टार प्रियांशु राजावत से: फ्रांस में बने इंटरनेशनल चैंपियन, अब वर्ल्ड नंबर-1 को हराना टारगेट
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नई दिल्ली2 घंटे पहलेलेखक: राजकिशोर
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दुनिया में सबसे ज्यादा खेले जाने वाले स्पोर्ट में दूसरे नंबर पर मौजूद भारत से एक और वर्ल्ड क्लास प्लेयर सामने आ रहा है। प्रकाश पादुकोण, पुलेला गोपीचंद, साइना नेहवाल, पीवी सिंधु, किदांबी श्रीकांत जैसे टैलेंट देख चुके अपने देश में मध्य प्रदेश के धार जिला का एक 20 साल का युवक खेल का राइजिंग स्टार बन रहा है। नाम प्रियांशु राजावत है।
प्रियांशु इसी महीने फ्रांस के ऑर्लियन्स में BWF सुपर-300 टूनार्मेंट में चैंपियन बने हैं। 12 साल बाद किसी भारतीय ने यह खिताब जीता है। उनसे पहले 2012 में आनंद पवार ने यहां ट्रॉफी जीती थी। चैंपियन बनने के सफऱ में प्रियांशु ने वर्ल्ड रैंकिंग में टॉप-20 में शामिल खिलाड़ियों को भी मात दी। जीत की बदौलत प्रियांशु रैंकिंग में 31वें नंबर तक पहुंचे। इसके बाद रैंकिंग में मामूली गिरावट आई है और वे फिलहाल 38वें नंबर पर है। भारतीय पुरुष खिलाड़ियों में वे एच एस प्रणय, किदांबी श्रीकांत और लक्ष्य सेन के बाद चौथे नंबर पर हैं।
फ्रांस में जीत के बाद भारत लौटने पर प्रियांशु ने भास्कर से खास बातचीत की। इसमें उन्होंने हालिया कामयाबी और इस मुकाम तक पहुंचने की जर्नी साझा की। आप भी पढ़िए…
पहले पढ़िए प्रियांशु ने जीत पर क्या कहा…?
‘मैंने सोचा भी नहीं था कि चैंपियन बनूंगा। ऑरलियन्स मार्स्टस जीतना मेरे लिए बड़ी अचीवमेंट है। पैरंट्स के सपोर्ट के बिना यहां तक सफर तय कर पाना मुश्किल था।’
आइए पढ़िए पूरी बातचीत…
सवाल: ऑरलियन्स मार्स्टस का सफर कैसा रहा। केंटा निशिमोटो और मैग्नस जोहानसन के खिलाफ क्या रणनीति रही?
प्रियांशु: मेरा पहला मैच किरण से जीता। फिर मुकाबला केंटा निशिमोटो से हुआ। निशिमोटा वर्ल्ड नंबर-12 प्लेयर हैं। फिर मैंने सोचा कि रैंकिंग से कुछ नहीं होता, मुझे अपना 100 प्रतिशत देना है। मैंने स्टेप बाय स्टेप प्लान तैयार किया। वह मैच जीता।
फिर फाइनल से पहले सोचा कि इसे हल्के में नहीं लेना है। मैं पहले गेम में डोमिनेट कर रहा था और जीत भी गया, लेकिन दूसरे गेम में मैग्नस जोहानसन की लीड कवर करने के बाद भी हार गया। तीसरे गेम में मैंने बढ़त बनाई, लेकिन जोहानसन ने कवर कर लिया और लीड ले ली। वहां मैंने सोचा कि गेम छोड़ना नहीं है। उन्हें गेम जल्दी समाप्त करने की जल्दी है। ऐसे में मुझे शटल अंदर रखना है। मैंने रखा और मुझे पॉइंट मिले। मैं चैंपियन बना।
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सवाल: फाइनल से पहले कोच ने क्या गुरुमंत्र दिया?
प्रियांशु: आमतौर पर मैं मैच जल्दी खत्म करने की कोशिश करता हूं। इसकी वजह से कई बार गलतियां कर बैठता हूं और मैच गंवा देता हूं। कोच कहा था जल्दबाजी मत करना और धौर्य रखना। तब मुझे लगा कि जीतने के लिए मैच को जल्दी खत्म करने की सोच से उबरना होगा। मैंने पूरे टूर्नामेंट में मैच के दौरान धैर्य रखा और इसका फायदा भी मिला।
सवाल: एक महीने पहले आप नेशनल चैंपियनशिप का फाइनल हार गए और अब ऑरलियन्स मास्टर्स जीता है, यह कैसे संभव हुआ?
प्रियांशु: पहले मैंने खान-पान का ध्यान रखा। बाहर का खाना बंद कर दिया। खास तौर पर जंक-फूड। फिर फिटनेस हासिल करने के लिए जिम सेशन पर पूरा फोकस किया। साथ ही रनिंग की। वहीं ट्रेनिंग सेशन में दिए गए वर्क को पूरे मन से करने की कोशिश की।
पहले दो टूर्नामेंट में कुछ नहीं कर पाया, फिर लगा कि यह टूर्नामेंट छोड़ दूं, लेकिन मैंने तय किया कि छोड़ने के बजाय इस पर फोकस करूं। मैच जीता, उसके बाद जैसे-जैसे मैच जीतता गया, मैं अपना फोकस बढ़ाता गया। अब टूर्नामेंट जीतकर अच्छा लग रहा है।
सवाल: खाने में सबसे ज्यादा क्या पसंद हैं?
प्रियांशु: पिज्जा खाना पसंद है। जीतने के बाद खाया।
सवाल: बैडमिंटन रैंकिंग में 13 स्थान की छलांग लगाई है। अब क्या टारगेट है इंडिया नंबर-1?
प्रियांशु: नहीं, वर्ल्ड नंबर बनना टारगेट है। मुझे वर्ल्ड चैंपियनशिप जीतना है और फिर पेरिस ओलिंपिक के लिए क्वॉलिफाई करना है। इस साल से ओलिंपिक के लिए क्वॉलिफाइंग टूर्नामेंट शुरू हो जाएंगे।
ओलिंपिक में मेंस में पहला मेडल जीतना है। अभी तक ओलिंपिक में मेंस में किसी ने मेडल नहीं जीता है और मैं जीतने वाला पहला मेंस बनना चाहता हूं।
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सवाल: भारतीय खिलाड़ियों में खुद से बेहतर किसे देखते हैं, किसे हराना चाहते हैं?
प्रियांशु: मैं श्रीकांत भैया को खुद से हाइली रेट करना चाहता हूं। उनके साथ कई प्रैक्टिस मैच खेले हैं, लेकिन अब तक टूर्नामेंट में सामना नहीं हुआ है। उनके साथ खेलना चाहता हूं और उन्हें हराना चाहता हूं। साथ ही वर्ल्ड लेवल पर जैक्सन को हराना चाहता हूं।
सवाल: क्रिकेट के दौर में बैडमिंटन को क्यों चुना। कैसे शुरुआत हुई?
प्रियांशु: मेरे बड़े भाई भी बैडमिंटन खेलते थे। मैं पापा के साथ उन्हें लेने जाता था। भाई को खेलता देख मैंने भी खेलना शुरू कर दिया। शुरुआत से ही मुझे यह गेम पसंद आया। कुछ समय धार में खेलने के बाद मेरा चयन गोपीचंद एकेडमी, ग्वालियर में हो गया। वहां मेरे खेल में काफी बदलाव आया। फिर 2011 में मैं हैदराबाद चला गया।
सवाल: यहां तक पहुंचने में क्या परेशानियां आईं?
प्रियांशु: खेल के लिए मैंने 8 साल की उम्र में घर छोड़ दिया था। वह समय काफी कठिन था। कई बार जब मम्मी-पापा की याद आती थी। मैं हॉस्टल में अकेले रोता था। फिर साथी, कोच और हॉस्टल के स्टॉफ मुझे समझाते थे।
गोपी सर और अन्य स्टाफ कहते थे कि बड़ा प्लेयर बनना है, तो यहां पर परिवार वालों को छोड़कर रहना पड़ेगा। तब मैं सोचता था कि नहीं मुझे बैडमिंटन में कुछ करना है। मुझे बड़ा प्लेयर बनना है।
सवाल: आपका रोल मॉडल कौन है?
जवाब : रोल मॉडल तो मैं पुल्लेला गोपीचंद सर को बोलूंगा और गेम के लिए किदांबी श्रीकांत सर को मानता हूं।
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