दीपक-राहुल के कोच की कहानी: खुद नहीं बन पाए क्रिकेटर तो बेटों को बनाया, पिता बोले- मेरी तपस्या का 11 गुना फल मिला
आगरा11 घंटे पहलेलेखक: गौरव भारद्वाज
दीपक चाहर और राहुल चाहर के साथ उनके कोच लोकेंद्र सिंह चाहर।
टी-20 वर्ल्ड कप में आज भारत-पाकिस्तान का मैच है। आगरा के क्रिकेटर बंधु दीपक चाहर और राहुल चाहर को हर कोई जानता है। राहुल वर्ल्ड कप में टीम इंडिया का हिस्सा हैं। उनकी सफलता की कहानी तो हर कोई जानता है। उनको कामयाबी के शिखर पर पहुंचाने वाले उनके कोच लोकेंद्र सिंह चाहर के बारे में कम लोगों को पता होगा। हम बता रहे हैं दोनों के क्रिकेटर बनने की कहानी…
श्रीगंगानगर से शुरू हुई थी कहानी
आगरा के नारौल गांव के रहने वाले लोकेंद्र सिंह चाहर क्रिकेटर दीपक चाहर के पिता हैं। वो एयरफोर्स से रिटायर हैं। उन्होंने बताया कि जब वे 2004 में श्रीगंगानगर में तैनात थे तो वो अपने बेटे दीपक को गली में क्रिकेट खेलते देखते थे। उन्होंने देखा कि दीपक दूसरे लड़कों से अच्छा खेलता है। गेंदबाजी अच्छी है। बस वहीं से उन्होंने बेटे को क्रिकेटर बनाने की ठान लिया। इसके बाद वो दीपक को एक क्रिकेट एकेडमी में ले गए। 20 दिन दीपक ने वहां पर ट्रेनिंग ली। मगर, उन्हें लगा कि एकेडमी में जो मेहनत वो कर रहा है, उससे वो इंडिया टीम नहीं पहुंच पाएगा। ऐसे में उन्होंने खुद ही दीपक को ट्रेंड करने की ठानी। उन्होंने बताया कि वो खुद क्रिकेट खेलना चाहते थे, लेकिन घर से सपोर्ट नहीं मिला था। ऐसे में उन्होंने बेटे को क्रिकेटर बनाने का सोचा।
दीपक के साथ राहुल भी आया तो बढ़ गई चुनौती
लोकेंद्र सिंह चाहर ने बताया कि पहले वो दीपक को ट्रेंड कर रहे थे। इसके बाद उनके छोटे भाई देशराज का बेटा राहुल भी आ गया। ऐसे में अब दोनों को टीम इंडिया तक पहुंचाने की जिम्मेदारी थी। उन्होंने इस जिम्मेदारी को उठाया। दोनों को ट्रेनिंग देनी शुरू की। घर के सामने ही नेट लगाए। वहां पर सुबह दोनों अपनी प्रैक्टिस करते थे। ऐसा कोई दिन होगा जिस दिन प्रैक्टिस से छुट्टी मिलती होगी। इसके अलावा उन्होंने दोनों का स्कूल ड्रॉप कराया। एग्जाम के समय दोनों को पढ़ाई पर फोकस कराते थे।
दोनों के सफल होने पर मिला 11 गुना फल
लोकेंद्र चाहर ने बताया कि दोनों की ट्रैनिंग के दौरान उनकी प्राथमिकता सिर्फ ग्राउंड से घर और घर से ग्राउंड थी। पहले दीपक था तो एक लक्ष्य था, लेकिन राहुल के आने के बाद एक और एक 11 हो गए। दोनों के सलेक्शन के बाद उनकी तपस्या का 11 गुना फल मिला है।
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