तमिलनाडु फुटबॉल टीम की हालत खराब: आर्थिक तंगी के कारण गेम छोड़ रही थीं खिलाड़ी, कोच ने घर में रखकर ट्रेनिंग कराई
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चंडीगढ़27 मिनट पहलेलेखक: गौरव मारवाह
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चैंपियन तमिलनाडु की फुटबॉल टीम की खिलाड़ी। फोटो: गीतांश गौतम
खेलो इंडिया को अगर सपने साकार होने वाली गेम्स कहा जाए तो बिल्कुल भी गलत नहीं होगा। ऐसी ही एक कोच हैं कोकिला, जो तमिलनाडु की महिला फुटबॉल टीम को सिखाती हैं। उनकी कोचिंग में तमिलनाडु ने फाइनल में झारखंड को 2-0 से हराया।
इससे पहले, सेमीफाइनल में मेजबान हरियाणा को 3-2 से हराकर सबसे बड़ा उलटफेर किया था। इस टीम में कुछ खिलाड़ी ऐसी भी हैं, जिनके परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी। परिवार उन्हें गेम खिलाने में सक्षम नहीं था।
खिलाड़ियों की प्रतिभा को देखकर कोच ने उन्हें अपने घर में जगह देकर उनका गेम जारी रखा। कोकिला बताती हैं, ‘टीम में पांच लड़कियां ऐसी थीं, जिनके परिवार की स्थिति ऐसी नहीं थी कि उनका गेम जारी रख सकें। जब तक ये स्कूल में रहीं तब तक इनके पास हॉस्टल था। इसके बाद उन्हें अपने घर लौटना पड़ता, मैं ये नहीं चाहती थी। मैंने अपने घर के उपर वाला हिस्सा इन्हीं के लिए रखा है।’
टीम की स्टॉपर बैक एन. लावण्या कहती हैं, ‘परिवार गेम के लिए सपोर्ट तो करता है, लेकिन वे दैनिक वेतनभोगी हैं, इसलिए जो भी कमाई है वह खाने में ही खर्च हो जाती है। कोच ही सब कुछ मैनेज करती हैं। मुझे देश के लिए खेलकर अपना और उनका सपना साकार करना है।’
वहीं, कप्तान और गोलकीपर धनलक्ष्मी ने कहा, ‘यह खिताब कोच व मेरे लिए बहुत खास है। अगर वे न होतीं तो हम यहां नहीं होते।’ लेफ्ट विंगर एम. परमेश्वरी ने बताया, ‘उन्होंने अपने बच्चों की तरह हमें संभाला। वे हर मौके पर हमारे साथ खड़ी रहती हैं।’ स्टॉप बैक लावण्या बी. ने कहा, ‘परिवार से दूर रहना आसान नहीं।
वे मजदूरी करते हैं और गेम का खर्च नहीं उठा सकते। मैं ग्रेजुएशन कर रही हूं। खेल के अलावा कोच ही मेरी पढ़ाई भी मैनेज करती हैं।’ फॉरवर्ड ए. महालक्ष्मी बताती हैं, ‘यह मेरा पहला गोल्ड है। मेरी जितनी भी गेम है कोच की ही देन है। मेरे पिता नहीं है और मां ही देखभाल करती हैं। मां के बाद अगर कोई मेरे लिए मायने रखता है तो वो कोच कोकिला हैं।’
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