ग्रीन पार्क के पिच क्यूरेटर का इंटरव्यू: 15 दिन का कोर्स करा कर इलेक्ट्रीशियन को बना दिया गया पिच क्यूरेटर

कानपुर15 मिनट पहले

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ग्रीन पार्क के पिच क्यूरेटर का इंटरव्यू: 15 दिन का कोर्स करा कर इलेक्ट्रीशियन को बना दिया गया पिच क्यूरेटर

पिच क्यूरेटर शिवकुमार यादव

क्रिकेट मैच में पिच का रोल सबसे अहम होता है। बेहतर पिच पर क्रिकेट का खेल भी बेहतर होता है और खिलाड़ी भी उसकी जमकर सराहना करते हैं। लेकिन कानपुर के ग्रीन पार्क स्टेडियम की पिच हमेशा से विवादों में रही है। इसे भारत के पांच टेस्ट सेंटरों में से एक माना जाता है, लेकिन यहां के विकेट में बीते कई सालों से टेस्ट मैच पूरे पांच दिन नहीं चल पाए है। इसकी वजह से सेंटर के मैचों में भी कटौती की गई है। मुख्य वजह यहां के पिच क्यूरेटर हैं। जिन्हें मात्र 15 दिन का कोर्स करने के बाद से ही इस ऐतिहासिक टेस्ट सेंटर की पिच बनाने की जिम्मेदारी दे दी गई। जिसका खामियाजा भी बीसीसीआई को भुगतना पड़ा।

बीसीसीआई ने इस बार अपने सीनियर पिच क्यूरेटर को ग्रीन पार्क की पिच को सुधारने का जिम्मा सौंपा, लेकिन वह भी नाकाफी साबित हो रहा है, क्योंकि पिच को संवारने का काम एक दो दिन का नहीं हैं। दोनों की टीम के कोच फिलहाल प्रैक्टिस पिचों पर अपनी नाराजगी जता चुके चुके हैं। अब देखना यह होगा कि ग्रीन पार्क टेस्ट में विकेट कैसा बर्ताव करता है। इसी सिलसिले में भास्कर ने पिच क्यूरेटर शिवकुमार यादव से खास बातचीत की। जिसमें उन्होंने खेल विभाग के इलेक्ट्रीशियन से सेंट्रल जोन का पिच के क्यूरेटर बनने तक के सफर की यादें साझा की।

2000 में प्रयागराज से लाइट ठीक करने आए थे ग्रीन पार्क में…
शिव कुमार ने बताया कि उन्होंने एक इलेक्ट्रीशियन के तौर पर खेल विभाग में नौकरी ज्वाइन की थी। लेकिन आज की तारीख में मैं सेंट्रल जोन का पिच क्यूरेटर हूं। दरअसल मैं अक्टूबर 2000 में प्रयागराज से कानपुर के ग्रीन पार्क स्टेडियम में लाइटिंग अरेंजमेंट करने के लिए बुलाया गया था। इस दौरान बीसीसीआई की पिच कमेटी के सदस्य व ग्रीन पार्क के संरक्षक आनंद शुक्ला से मेरी बात हुई थी पिच को लेकर। उन्होंने ही मुझे ग्रीन पार्क के ग्राउंड संभालने का जिम्मा सौंपा था।

हमेशा से ही क्रिकेटर बनना चाहते थे…
शिवकुमार ने बताया, साल 2000 में जब वह कानपुर आये तब उन्हें ग्राउंड के बारे में कुछ खास नहीं पता था तब धीरे धीरे जानकारियां यहां की जो पिच तैयार करते थे उनसे मेरी बनने लगी। तभी अनुभवी लोगों के साथ रह कर जाना कि पिच को कैसा होना चाहिए। कुछ दिनों बाद समझ आया कि ग्रीन पार्क की पिच थोड़ी ड्राई है।

बहुत बुरी लगी थी यह बात…
शिवकुमार ने बताया कि जब वह कानपुर आए थे उस समय साउथ अफ्रीकी टीम यहां टेस्ट मैच खेलने आयी थी। उस दौरान बीसीसीआई की पिच एंड ग्राउंड्स कमेटी के चेयरमैन कस्तूरी रंजन ने कानपुर स्टेडियम पर कमेंट करते हुए कहा था कि ग्रीन पार्क का नाम बदल कर ब्राउन पार्क कर देना चाहिए, क्योंकि उस समय यहां पर इतनी ग्रीनरी नहीं थी, यह बात मुझे बहुत बुरी लगी थी यह बात भी मैंने अपने गॉडफादर को बताई थी।

गॉडफादर आनंद शुक्ल को भी बुरी लगी थी यह बात…
शिवकुमार ने बताया कि, यह बात जब मैंने अपने गॉडफादर आनंद शुक्ला को बताई थी तो उन्होंने कहा आप तो इलेक्ट्रीशियन है आपको पिच के बारे में तुम कितना जानते हो, जो जानकारी है उसी हिसाब से बात करो। तब मैंने उनको अपने स्पोर्ट्स के सर्टिफिकेट दिखाए। उन्होंने सिर्फ इतना कहा हेड क्यूरेटर छोटेलाल के साथ जुड़ रहिए बाकी मैं कर दुंगा।

घरेलू व अंतरराष्ट्रीय के लिए पिच तैयार करना मुझे छोटेलाल ने सिखाया…
घरेलू व अंतरराष्ट्रीय पिचों में बोर्ड की तरफ कोई भी जवाब नहीं देता। इस बारे में बताते हुए शिव ने बताया, जिस समय में ग्रीन पार्क में काम करना शुरू किया था तब मैं ग्रीन पार्क का विकेट बनाने वाले छोटेलाल के साथ ही खड़े हो कर पिच को कैसे बनाया जाता है उसकी जानकारी लेता था। घरेलू व अंतरराष्ट्रीय मैच के लिए पिच कैसी होनी चाहिए और क्या क्या परिवर्तन होने चाहिए सभी जानकारी उनसे लेता था। उन्होंने भी मेरी बहुत मदद की थी।

न्यूज़ीलैंड को हारने के लिए न्यूजीलैंड से ही आई थी घास….

शिवकुमार ने बताया कि 2002 में जब ग्राउंड को नए सिरे से तैयार किया गया था। इसमें करीब 5 महीने का समय लगा था। इस दौरान मैदान से जंगली घास हटा कर न्यूज़ीलैंड से घास मंगाकर लगाई गई थी। घास की पोजिशन और साइज को लेकर तीन बार पूरे स्टेडियम का बदलाव करना पड़ा था।

ग्रीन पिच विवादों में क्यों रही…
ग्रीन पार्क के विकेट को टेस्ट मैच के लिए बेहतर माना जाता रहा है। लेकिन, 2008 के बाद हुए टेस्ट मुकाबलों पर नजर डालें तो इनके नतीजे पांच दिन से पहले ही आ गए। इसके लिए विरोधी टीम ने कहीं ना कहीं पिच को जिम्मेदार ठहराया। आगामी टेस्ट मैच में भी क्या यही स्थिति फिर दोहराई जाएगी, इससे कन्नी काटते हुए शिव कुमार बोले कि क्रिकेट अनिश्चितताओं का खेल है। पूरे पांच दिन टेस्ट मैच न चलने का दोष सिर्फ पिच पर ही नहीं डाला जा सकता। विरोधी टीम के खिलाड़ियों का प्रदर्शन भी इसमें बहुत मायने रखता है।

लेकिन 15 दिन के कोर्स करके ऐसे कैसा बोल सकते है…
2004 से ग्रीन पार्क में शिव कुमार ने पिच बनाने का काम शुरू किया। इसके बाद भारतीय टीम ने यहां कई विरोधियों को धूल चटाई। लेकिन, इन मुकाबलों का नतीजा तीसरे या चौथे ही दिन आ गया। इसके बाद विरोधी टीम व मीडिया में पिच को लेकर जमकर सवाल उठे। पिच पर सवाल उठने पर क्यूरेटर के बारे में जान सभी लोग आश्चर्य में पड़ गए। दरअसल इस दौरान पिच क्यूरेटर शिव कुमार नहीं बल्कि इलेक्ट्रीशियन शिव कुमार अंतरराष्ट्रीय मैच‌ के लिए विकेट तैयार करते थे। यह मामला सामने आने बाद यूपीसीए की ओर से आनन फानन में उन्हें 15 दिन का कोर्स कराकर पिच क्यूरेटर घोषित कर दिया गया।

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