कमेंटेटर पद्मश्री सुशील दोशी का इंटरव्यू: आईपीएल तीन घंटे का ऐसा क्रिकेट जिसमें फिल्मी ग्लैमर, रोमांच, रहस्य के साथ गंभीरता भी है
प्रिया व्यास (इंदौर)8 घंटे पहले
आईपीएल सीजन-3 में कमेंट्री की है मैंने…। यह खेल असल में तीन घंटे की फिल्म की तरह है, जिसमें ग्लैमर, रोमांच, रहस्य के साथ ही क्रिकेट की गंभीरता भी है। अब तो अमेरिका में भी क्रिकेट खेला जाने लगा है। अब तक कंमेंट्री के दौरान मैं भारत-ऑस्ट्रेलिया, भारत-पाकिस्तान जैसे नाम बोला करता था। आईपीएल के लिए माइक पर दिल्ली कैपिटल, मुंबई इंडियंस जैसे नाम पुकारना शुरुआत में अटपटा लगता था। ये नाम ज़बान पर धीरे से चढ़े।
आईपीएल में ही मेरे साथ इंग्लैड के वेटरन क्रिकेटर भी कमेंट्री कर रहे थे, वे बोले- भारत क्रिकेट में वाकई काफी आगे बढ़ गया है। मैंने पूछा वह कैसे ? उन्होंने कहा- इंग्लैंड की चीयर गर्ल्स सर से पैर तक ढंकी हुई हैं और इंडियन चीयर गर्ल्स शार्ट स्कर्ट्स में आई हैं।
यह बात साहित्य मध्यभारत हिंदी समिति की ओर से आयोजित शताब्दी सम्मान के तहत चल रहे साहित्य उत्सव में हिस्सा लेने आए कमेंटेटर सुशील दोशी ने दैनिक भास्कर से बातचीत में कही। उन्होंने कमेंट्री के किस्से भी सुनाए।
मैंने हिंदी में कमेंट्री का जोखिम लिया
वरिष्ठ क्रिकेट कमेंटेटर सुशील दोशी ने कहा कि बात 1968 की है जब मैं इंजीनियरिंग कॉलेज में अध्ययनरत था और उस समय अंग्रेजी कमेंट्री का बड़ा दौर था। ऐसे समय में मैंने हिंदी भाषा में कमेंट्री करने का जोखिम लिया। हालांकि शुरु में बहुत अधिक सफलता नहीं मिली, किसी को विश्वास नहीं था कि मैं हिंदी में भी कमेंट्री कर सकता हूँ, लेकिन बाद में सफलता मिलना शुरु हुई और उसके बाद मैंने क्रिकेट की हिंदी में ऐसी कमेंट्री की कि आज देश और दुनिया में क्रिकेट के साथ हिंदी भी पहुँच गई।
कीथ मिलर ने कहा आपकी भाषा समझ नहीं आ रही पर बहुत मीठी है
सुशील दोशी ने कहा ऑस्ट्रेलिया कमेंट्री के लिए गए, वहां हिन्दी कमेन्ट्री कर रहा था, तब कीथ मिलर, क्रिकेट की दुनिया के ऑल राउंडर माने जाते थे उस समय वे मेरे पास आए और बोले आपकी बात मुझे कुछ समझ नहीं आ रही है पर मेरे कानों में जो घुल रहा है वह बहुत मीठा है।
क्रिकेटर्स के लाइब्रेरी से चुराकर एलबम में लगाता था
क्रिकेटर्स के फोटो लाइब्रेरी से चोरी कर अपने एलबम में लगाता था। 13 साल की उम्र में पिताजी से बॉम्बे टेस्ट मैच देखने की मांग की. उस समय रिची बेनॉद की वर्ल्ड चैम्पियन टीम भारत आई थी। पिता को क्रिकेट में रुचि नहीं होने और पैसों की मजबूरी के बाद भी मुझे मुंबई ले गए। 4 दिन तक हम स्टेडियम के चक्कर काटते रहे, टिकट तो मिलें नहीं। हमारी ही तरह 50 हजार लोग बाहर भी इंतजार कर रहे होंगे। चौथे दिन एक पुलिस वाले ने चायपान के वक्त मुझे भीड़ के साथ अंदर कर दिया।
उसी कमेंट्री बॉक्स में बैठकर मेरा सपना पूरा हुआ जिसे देखकर कमेंट्री का खयाल आया
जब मैच देख रहा था तब मेरी नजर कमेन्ट्री बॉक्स पर पड़ी जहां विजय मर्चेंट, बॉबी तलियार कमेन्ट्री कर रहे थे। तब सोचा ये जगह मेरे लिये है। उस समय सोचा नहीं था जंगली सपने भी इस तरह पूरे होते हैं। आखिर मेरी पहली कमेंट्री उसी शहर, स्टेडियम उसी कमेंट्री बॉक्स से शुरू हुई जिसमें बैठने का सपना मैंने देखा था।
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