अंधेरी सुरंग में 334 किमी लंबी मैराथन: लंदन में दुनिया की सबसे बड़ी अंडरग्राउंड मैराथन, खिलाड़ियों को डेढ़ किमी लंबी अंधेरी सुरंग के 100 चक्कर लगाने होंगे

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लंदन4 मिनट पहले

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अंधेरी सुरंग में 334 किमी लंबी मैराथन: लंदन में दुनिया की सबसे बड़ी अंडरग्राउंड मैराथन, खिलाड़ियों को डेढ़ किमी लंबी अंधेरी सुरंग के 100 चक्कर लगाने होंगे

मैराथन दौड़ना किसी के लिए भी आसान नहीं होता। सही प्रैक्टिस न हो तो कुछ समय के बाद ही सांस फूलने लगती है। हालांकि, कई लोग ऐसे भी हैं जो एक बार में कई सौ किलोमीटर दौड़ जाते हैं, पर उनमें से ऐसे बहुत कम लोग हैं जो ये रेस एकदम घुप अंधेरे में किसी सुरंग में पूरी करते होंगे। इंग्लैंड में ऐसी ही रोंगटे खड़े कर देने वाली मैराथन साल 2019 से आयोजित हो रही है।

‘द टनल’ नाम की ये मैराथन समरसेट काउंटी की ऐसी घनी अंधेरी सुरंग में आयोजित होती है, जिसका इस्तेमाल कभी रेलवे ट्रैक के रूप में किया जाता था। 2013 में इस सुरंग को साइक्लिंग ट्रैक में तब्दील कर दिया गया। इंग्लैंड की इस सबसे लंबी सुरंग का इस्तेमाल मार्क कॉकबेन हर साल मैराथन आयोजित करने के लिए कर रहे हैं। कई बार अल्ट्रा मैराथन दौड़ चुके मार्क इस डेढ़ किमी से कुछ अधिक लंबी सुरंग में 334 किमी लंबी मैराथन आयोजित करते हैं। रेस में भाग लेने वाले लगभग 40 धावकों को ये रेस कुल 55 घंटे में पूरी करनी होती है। इस मैराथन में धावक की शारीरिक क्षमता के साथ-साथ अंधेरे में दौड़ते हुए उसकी मानसिक मजबूती की परीक्षा भी हो जाती है।

रेस कितनी मुश्किल है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि शुरुआती संस्करण में ये रेस सिर्फ दो प्रतियोगी ही पूरी कर पाए थे। इसमें कोई लंबा तय रूट नहीं है। धावक को डेढ़ किमी भागने के बाद पलटकर फिर से उसी रूट पर भागना होता है और ऐसे 100 चक्कर 55 घंटे में पूरे करने होते हैं। ये सब एकदम अंधेरे में होता है। सुबह के 5 बजे से रात 10 बजे तक सुरंग में छोटी लाइट्स जलती हैं, जिससे पैदल यात्री या बाइक सवार निकल सकें, पर रात 10 बजे के बाद वो लाइट्स भी बंद हो जाती हैं, और धावक के पास रह जाती है सिर्फ उसकी हेड टॉर्च। कई बार स्थिति इतनी खतरनाक हो जाती है कि रनर को अपने आस-पास अजीबोगरीब चीजें दिखने का भ्रम होने लगता है।

56 साल की फॉईस्टर बताती हैं कि वे इस रेस को पूरा करने के लिए एकदम तैयार थी, पर अंतिम 15 किमी तक पहुंचते-पहुंचते उन्हें समझ ही नहीं आया कि उनके साथ क्या हो रहा था। वे रास्ता भटक गई। उन्होंने दौड़ने की जगह चलना शुरू कर दिया, पर फिर भी उन्हें समझ नहीं आया कि वे किस दिशा में जा रही थी। एक समय बाद उन्हें ऐसा लगा जैसे वो पूरी तरह से अंधी हो चुकी हैं। ऐसे ही कई अनुभव इस मैराथन में भाग लेने वाले अन्य लोगों को भी हुए हैं।

इस मैराथन को शुरू करने वाले मार्क बताते हैं कि उन्होंने ये रेस शुरू ही इसलिए की, ताकि लोग अपनी सीमाओं को तोड़ सकें और रोमांचित हो सकें। वे प्रतिभागियों से लगभग 20 हजार रुपए की एंट्री फीस लेते हैं। रेस के नियम इतने कड़े हैं कि प्रतिभागी अपने साथ हेडफोन, सपोर्ट स्टिक या कोई दूसरी मददगार चीज नहीं ले जा सकते।

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